🔥 पृष्ठभूमि
ईरान और इज़राइल के बीच तनाव ने एक बार फिर पश्चिम एशिया को युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। ड्रोन हमले, मिसाइल हमले और प्रतिशोध की धमकियों ने इस संघर्ष को वैश्विक चिंता का विषय बना दिया है। इस बीच, भारत जैसे देश के लिए यह सवाल अहम है कि वह इस पूरे परिदृश्य में क्या रुख अपनाए?
🇮🇳 भारत के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
1. ईरान – रणनीतिक पड़ोसी और ऊर्जा स्रोत
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चाबहार पोर्ट भारत के लिए पाकिस्तान को बायपास करने वाला अहम सामरिक प्रोजेक्ट है।
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ईरान भारत के तेल आपूर्ति नेटवर्क का भी एक अहम हिस्सा रहा है।
2. इज़राइल – रक्षा और तकनीकी सहयोगी
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भारत इज़राइल से उन्नत हथियार प्रणाली, ड्रोन और साइबर सुरक्षा तकनीक प्राप्त करता है।
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इज़राइल भारत के कृषि नवाचार, जल प्रबंधन और स्मार्ट खेती में भी सहयोगी रहा है।
3. अमेरिका – वैश्विक शक्ति और रणनीतिक साझेदार
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अमेरिका भारत का प्रमुख व्यापारिक और रक्षा सहयोगी है।
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लेकिन अमेरिका खुले तौर पर इज़राइल के समर्थन में खड़ा है और ईरान पर पहले से ही कड़े प्रतिबंध लगा चुका है।
4. पाकिस्तान – छुपा एजेंडा
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पाकिस्तान इस पूरे घटनाक्रम में खुद को 'मुस्लिम वर्ल्ड' का पैरोकार बताने की कोशिश में है, और अमेरिका से निकटता बढ़ाने में लगा है।
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भारत को चौकन्ना रहना होगा कि यह संघर्ष कहीं पाकिस्तान के लिए भारत-विरोधी स्थिति का लाभ लेने का माध्यम न बन जाए।
🗳️ संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्टैंड क्या रहा?
हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा में युद्धविराम की मांग वाले प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया (abstain) किया। भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह आतंकवादी हमलों की निंदा के बिना कोई भी प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता। यह संकेत है कि भारत नैतिक रेखाओं से समझौता नहीं करेगा, भले ही उसे राजनीतिक रूप से संतुलन बनाना हो।
🇷🇺 रूस-ईरान समीकरण और भारत के लिए इसका महत्व
🧱 1. रूस-ईरान की नज़दीकी बढ़ती जा रही है
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दोनों देशों पर अमेरिका और पश्चिम के प्रतिबंध हैं, और इसीलिए वे अब एक-दूसरे के रणनीतिक सहयोगी बनते जा रहे हैं।
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रूस ने ईरान से सैन्य ड्रोन और हथियार लिए हैं, जिससे यह गठजोड़ और गहरा हुआ है।
🇮🇳 2. भारत और रूस की ऐतिहासिक मित्रता
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रूस भारत का पारंपरिक मित्र है — 1971 से लेकर ब्रह्मोस परियोजना तक इसकी छाया रही है।
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रूस के साथ भारत का रक्षा और ऊर्जा सहयोग बहुत मजबूत है।
🧭 3. इस स्थिति में भारत के लिए यह संदेश
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रूस का ईरान के पक्ष में खड़ा होना भारत को यह अवसर देता है कि वह बिना सीधे अमेरिका या इज़राइल का विरोध किए ईरान के साथ संपर्क बनाए रख सके।
✔️ रूस एक “रणनीतिक पुल” की तरह काम कर सकता है जिससे भारत दोनों ध्रुवों में सामंजस्य बना सके।
🧭 तो भारत को क्या करना चाहिए?
✅ रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना
भारत को किसी भी दबाव में आकर पक्ष नहीं लेना चाहिए। उसे अपने राष्ट्रीय हितों और सिद्धांतों के आधार पर ही निर्णय लेना चाहिए।
✅ शांति और संवाद को प्राथमिकता देना
भारत को इस संघर्ष में एक शांतिदूत की भूमिका निभानी चाहिए — जहाँ वह दोनों पक्षों से बातचीत की अपील करे और हिंसा की निंदा करे।
✅ भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
पश्चिम एशिया में लाखों भारतीय रहते हैं। भारत को सबसे पहले अपने नागरिकों की सुरक्षा और निकासी योजनाओं पर काम करना होगा।
✅ सामरिक हितों की रक्षा
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चाबहार पोर्ट, पश्चिम एशियाई कनेक्टिविटी, ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा सहयोग – इन सभी को संतुलन के साथ आगे बढ़ाना होगा।
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साथ ही, भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्वतंत्रता और गरिमा बनाए रखनी होगी।
✒️ निष्कर्ष
भारत के सामने आज कूटनीति की एक बड़ी परीक्षा है। उसे न सिर्फ़ पश्चिम एशिया के संकट को समझदारी से संभालना है, बल्कि अपने भविष्य के रणनीतिक हितों को भी मज़बूती से सुरक्षित रखना है।
यह कोई दो पक्षों की लड़ाई नहीं है, बल्कि शांति और विवेक बनाम युद्ध और अंधता की लड़ाई है। भारत को आज अपनी वही भूमिका निभानी होगी जिसके लिए वह विश्वपटल पर जाना जाता है — एक संतुलित, शांतिप्रिय और दूरदर्शी शक्ति के रूप में l