रोहिणी आयोग भारत सरकार द्वारा 2017 में गठित एक आयोग था जो अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण की जांच करने के लिए था. आयोग का नेतृत्व न्यायमूर्ति जी. रोहिणी ने किया था, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश थे. आयोग को 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन इसे कई बार विस्तार दिया गया और अंततः 2 अगस्त 2023 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि ओबीसी समुदायों के बीच असमानताएं मौजूद हैं और यह कि कुछ समुदायों को अन्य की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है. आयोग ने उप-वर्गीकरण की सिफारिश की ताकि सबसे अधिक पिछड़े समुदायों को अधिक लाभ मिल सके. आयोग ने यह भी सिफारिश की कि उप-वर्गीकरण को एक जनगणना के आधार पर किया जाना चाहिए.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लेकर विवाद है. कुछ लोगों का मानना है कि उप-वर्गीकरण एक अच्छा विचार है क्योंकि यह सबसे अधिक पिछड़े समुदायों को अधिक लाभ देगा. अन्य लोगों का मानना है कि उप-वर्गीकरण एक खराब विचार है क्योंकि यह जाति के आधार पर भेदभाव करेगा.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अभी सरकार द्वारा विचाराधीन है. यह देखना बाकी है कि सरकार आयोग की सिफारिशों को लागू करती है या नहीं.
रोहिणी आयोग की सिफारिशें
रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
- ओबीसी समुदायों को तीन उप-वर्गों में वर्गीकृत किया जाना चाहिए: सबसे अधिक पिछड़े, पिछड़े और मध्यम पिछड़े.
- उप-वर्गीकरण को एक जनगणना के आधार पर किया जाना चाहिए.
- सबसे अधिक पिछड़े समुदायों को 27% आरक्षण का अधिकतम लाभ मिलना चाहिए.
- पिछड़े समुदायों को 10% आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए.
- मध्यम पिछड़े समुदायों को 5% आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के बारे में विवाद
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लेकर विवाद है. कुछ लोगों का मानना है कि उप-वर्गीकरण एक अच्छा विचार है क्योंकि यह सबसे अधिक पिछड़े समुदायों को अधिक लाभ देगा. अन्य लोगों का मानना है कि उप-वर्गीकरण एक खराब विचार है क्योंकि यह जाति के आधार पर भेदभाव करेगा.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के समर्थकों का तर्क है कि उप-वर्गीकरण एक आवश्यक कदम है क्योंकि यह ओबीसी समुदायों के बीच असमानता को दूर करेगा. उनका तर्क है कि कुछ ओबीसी समुदायों को अन्य की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है और उप-वर्गीकरण सभी समुदायों को समान अवसर प्रदान करेगा.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के विरोधियों का तर्क है कि उप-वर्गीकरण एक खराब विचार है क्योंकि यह जाति के आधार पर भेदभाव करेगा. उनका तर्क है कि जाति एक सामाजिक दुर्व्यवस्था है और इसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. उनका यह भी तर्क है कि उप-वर्गीकरण ओबीसी समुदायों के बीच संघर्ष पैदा करेगा क्योंकि लोग अपने समुदाय को सबसे अधिक पिछड़ा साबित करने की कोशिश करेंगे.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का भविष्य
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अभी सरकार द्वारा विचाराधीन है. यह देखना बाकी है कि सरकार आयोग की सिफारिशों को लागू करती है या नहीं. अगर सरकार आयोग की सिफारिशों को लागू करती है, तो यह भारत में जाति व्यवस्था पर एक बड़ा प्रभाव डालेगा.