Thursday, October 26, 2023

जयचंद की जाति क्या है? क्या जयचंद एक गद्दार थे? एक ऐतिहासिक बहस

 



परिचय:

जयचंद कन्नौज के राजा थे, जिन्हें 1194 ईस्वी में मुहम्मद गौरी के खिलाफ चंदावर की लड़ाई में पराजित होने के लिए जाना जाता है। जयचंद को अक्सर एक गद्दार के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसने मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान को हराने में मदद की। परन्तु इस तथ्य के लिए कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जाते हैं। बिना साक्ष्य के किसी को गद्दार कहना उसके त्याग और बलिदान को तुच्छ दिखाने की मात्र कोशिश होती है। यह तथ्य है की कुछ दरबारी कवियों ने अपने राजा को अधिक शक्तिशाली दिखाने के लिए किसी न किसी को बलि का बकरा बनाती है। जयचंद को भी बलि का बकरा बना दिया गया क्योंकि उसके समकालीन राजाओं में से जयचंद से शक्तिशाली कितने राजा थे इतिहास में वर्णित है। 

प्रश्न उठता है की जयचंद को ही बलि का बकरा बनाने की क्या जरूरत पड़ी ? पृथ्वीराज को शक्तिशाली हिंदू सम्राट दिखाने की कोशिश में दुसरे राजा को देशद्रोही के रुप में प्रचारित कर दिया गया। पृथ्वीराज के हार के बाद मुहम्मद गौरी काफ़ी शक्तिशाली बन गया लेकिन कन्नौज अभी भी उसके हाथ से बहुत दूर था। चंदावर की लड़ाई में आंख में तीर लगने के कारण  मुहम्मद गौरी के सैनिकों के हाथों जो राजा अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ हो उसे इतिहास ने कभी सम्मान नहीं दिया अपितु उसे देश के गद्दार के रुप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। विरोध करने के लिए या सत्य बताने के लिए कौन था । जो प्रचारित किया गया जनमानस में वही स्थान प्राप्त हुआ क्योंकि शासन तो दिल्ली से ही चलती रही। 

इतिहासकारों ने इस सम्बंध में कोई भी तथ्य सामने नहीं ला पाए हैं कि जयचंद गद्दार थे। तो फिर इतिहास ने जयचंद को  उनको उपयुक्त जगह क्यों नहीं दी। कन्नौज में हार के बाद कन्नौज लगभग बिखर चूका था लोग पलायन कर गए अपने साथ गौरव अतीत के साथ क्योंकि राज्य गुलाम हो चूका था। इतिहास ने न तो कन्नौज के लोगों का दर्द दिखा और न ही कन्नौज की तबाही। 

  इसका जवाब भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत राजनीति से प्राप्त हो सकती है । भारतीय समाज में सामाजिक तानाबाना इस प्रकार से बुना गया है कि जाति लोगों के दिमाग में नहीं बल्कि भारतीय लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बनकर रह गया है। आज भी भारतीय समाज जाति से अलग नहीं हो सकते। बाबा भीमराव अंबेडकर के संविधान के बने हुए 100 वर्ष होने वाले हैं लेकिन आज भी जाति अपने स्थान पर विराजमान है। क्या जाति से अलग भारतीय समाज की कल्पना की जा सकती है? जवाब है कभी नहीं। तो क्या यह कहा जा सकता है कि जाति को लेकर भी राजाओं के बीच भी मतभेद या मनभेद रहे थे। इस सम्बंध में पृथ्वीराज चौहान और जयचंद की सोच अलग कैसे हो सकती हैं ? क्या कारण रहे होंगे संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जयचंद को अपनी जाति के कारण ही इतिहास में उन्हे वो स्थान प्राप्त नहीं हो सका जिसके वो हकदार हैं।

हालाँकि, जयचंद की जाति को लेकर भी काफी बहस है। कुछ लोग मानते हैं कि वह सोनार जाति से थे, जबकि अन्य मानते हैं कि वह किसी अन्य जाति से थे।

जयचंद की जाति के बारे में ऐतिहासिक साक्ष्य:

जयचंद की जाति के बारे में कोई ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। उनके बारे में सबसे प्राचीन और विश्वसनीय स्रोत, विद्यापति के "पुरुष-परीक्षा" और पृथ्वीराज रासो में उनकी जाति का उल्लेख नहीं है। इनमें उन्हें एक शक्तिशाली राजा के रूप में चित्रित किया गया है, लेकिन उनकी जाति का उल्लेख नहीं किया गया है।

कुछ लोगों ने जयचंद की जाति का अनुमान उनके नाम से लगाया है। उनका नाम "जयचंद" है, जो "चंद" नाम के अंत में "जय" शब्द से बना है। "चंद" एक हिंदू नाम है, जो अक्सर सोनार जाति के लोगों के लिए उपयोग किया जाता है। हालांकि, यह केवल एक अनुमान है, और इसे किसी ऐतिहासिक साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं किया गया है।

जयचंद की जाति के बारे में आधुनिक बहस:

हाल के दिनों में, जयचंद की जाति को लेकर कई तथ्य सामने रखे गए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि वह सोनार जाति से थे, क्योंकि उनके समय में सोनार एक सम्मानित जाति थी। अन्य लोगों का मानना है कि वह किसी अन्य जाति से थे, जैसे कि राजपूत या ब्राह्मण।

जयचंद की जाति पर विचार:

 जयचंद एक शक्तिशाली राजा थे, और उनकी जाति का उनके योगदान से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें अपनी जाति के आधार पर नहीं, बल्कि उनके कार्यों के आधार पर याद किया जाना चाहिए।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जाति एक सामाजिक संरचना है, जो लोगों को अलग-अलग समूहों में बांटती है। यह एक ऐसी संरचना है जिसे तोड़ना मुश्किल है। 

मेरा मानना है कि जाति एक ऐसी संरचना है जिसे खत्म कर देना चाहिए। यह एक ऐसी संरचना है जो लोगों को एक-दूसरे से अलग करती है और भेदभाव को जन्म देती है। हमें एक ऐसी समाज की स्थापना करने की कोशिश करनी चाहिए जहां सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों, चाहे उनकी जाति कुछ भी हो।

 जयचंद को भले ही इतिहास में एक कथित गद्दार की तरह पेश किया जा रहा हो, यह आवश्यक हैं की उनके जाति के लोग आगे आएं और इसका विरोध करें। आज जब भारतीय इतिहास को पुनः लिखे जाने की कवायद चल रही है तो इस सम्बंध में भी ध्यान रखा जाने की अवश्यकता है। 


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