भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित "इंटरिम व्यापार समझौता" इन दिनों अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है। अमेरिका अपने व्यापारिक साझेदारों पर टैरिफ कम करने का दबाव बना रहा है, और भारत से भी वही अपेक्षा की जा रही है।
लेकिन सवाल उठता है कि – क्या यह समझौता भारत के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए लाभकारी होगा या घातक?
इस प्रस्तावित समझौते की मुख्य बातें
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कुछ अमेरिकी कृषि उत्पादों (जैसे – गेहूं, दूध, मक्का, सोया, और चिकन) पर भारत को टैरिफ कम करने का दबाव।
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बदले में अमेरिका भारत के स्टील, ऑटो पार्ट्स और IT सेवाओं पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क में छूट दे सकता है।
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यह एक अस्थायी ("इंटरिम") समझौता होगा, जिसमें भविष्य में स्थायी व्यापार समझौते की संभावना को भी जोड़ा जाएगा।
भारत के लिए क्यों है यह समझौता चिंता का विषय?
1. 🇮🇳 भारत कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर है
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भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यदि अमेरिका से सब्सिडी वाला सस्ता डेयरी प्रोडक्ट भारत में आना शुरू हो गया, तो यह स्थानीय डेयरी किसानों की आजीविका को खतरे में डाल सकता है।
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गेहूं और मक्का जैसे अनाजों में भी भारत की उत्पादन क्षमता और भंडारण नीति आत्मनिर्भरता के स्तर पर है। आयात से मंडी में घरेलू किसानों की कीमतें गिर सकती हैं।
2. 🧑🌾 किसानों की आय और MSP मॉडल पर प्रभाव
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भारत में MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के आधार पर कई फसलें खरीदी जाती हैं। यदि विदेशी आयात सस्ते दाम पर मंडियों में बिके, तो सरकार का खरीद मूल्य मॉडल कमजोर हो सकता है।
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इससे कृषकों की आय में गिरावट, और आत्महत्या जैसे दुखद मुद्दों में वृद्धि हो सकती है।
3. 🧪 ICAR पर प्रभाव
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) देश की जलवायु के अनुसार कृषि तकनीक, बीज अनुसंधान, और खाद्य सुरक्षा मॉडल तैयार करती है।
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विदेशी फसलों की अधिकता से भारत में "बायोडाइवर्सिटी" और स्थानीय बीजों के संरक्षण को खतरा होगा। ICAR की कई परियोजनाएं अप्रासंगिक हो सकती हैं।
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अनुसंधान संस्थानों पर प्रयोगशालाओं और संसाधनों का बोझ बढ़ेगा, जो आयातित बीजों और रोगों के अनुकूलन पर लगेगा, न कि स्वदेशी कृषि को उन्नत करने पर।
अमेरिका का दृष्टिकोण क्या है?
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अमेरिका अपने उत्पादों के लिए नए बाजार चाहता है।
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वह चाहता है कि भारत WTO नियमों के तहत आयात पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क को हटाए।
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अमेरिका का तर्क है कि यह "फेयर ट्रेड" है, लेकिन वास्तव में अमेरिका अपने किसानों को भारी सब्सिडी देता है, जिससे प्रतिस्पर्धा असमान हो जाती है।
भारत को क्या करना चाहिए?
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कृषि क्षेत्र को "सेंसिटिव सेक्टर" घोषित करें, जहां टैरिफ में कोई छूट न दी जाए।
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स्थानीय किसानों और वैज्ञानिक संस्थानों की राय लेकर ही समझौता किया जाए।
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अमेरिका से केवल उन्हीं सेक्टरों में रियायत ली जाए, जो कृषि से असंबंधित हैं – जैसे कि IT, डिजिटल सेवा, फार्मा, स्टील आदि।
निष्कर्ष
भारत को व्यापारिक रिश्तों को मज़बूत करना चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय कृषि हितों की कीमत पर नहीं। किसानों की आत्मनिर्भरता और सुरक्षा देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी है। अमेरिका के साथ समझौते करते समय यह न भूलें कि भारत के गांव ही भारत की आत्मा हैं।
सुझाव
यदि आप किसान हैं, कृषि में शोध कर रहे हैं, या कृषि नीति से जुड़े हैं, तो इस विषय पर अपनी आवाज़ उठाएं। यह समय है जब नीतियां सिर्फ डिप्लोमैसी नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत पर आधारित होनी चाहिए।
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित "इंटरिम व्यापार समझौता" केवल दो देशों की आर्थिक साझेदारी का मसला नहीं है, बल्कि यह भारत के विभिन्न राज्यों के किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित कर सकता है। इस ब्लॉग में हम इसका विश्लेषण करेंगे चार प्रमुख कृषि-आधारित राज्यों के संदर्भ में:
बिहार
कृषि पर प्रभाव:
बिहार के किसान मुख्यतः धान, गेहूं और मक्का उगाते हैं। यदि अमेरिका से सस्ते मक्का और गेहूं भारत में आने लगते हैं, तो इससे बिहार के छोटे किसानों को सीधी प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ेगी।
चूंकि यहां की कृषि बारिश पर निर्भर है, लागत पहले से ही अधिक है। आयातित अनाजों से दाम गिरने पर किसानों को घाटा उठाना पड़ सकता है।
संस्थागत प्रभाव:
राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों और ICAR केंद्रों को स्थानीय बीजों की जगह अमेरिकी वेरायटी के अनुकूल रिसर्च में पैसा खर्च करना पड़ सकता है।
पंजाब
कृषि पर प्रभाव:
पंजाब भारत की खाद्यान्न टोकरी माना जाता है, खासकर गेहूं और धान के लिए। MSP सिस्टम यहां सबसे अधिक लागू है।
यदि अमेरिकी गेहूं या मक्का सस्ते दरों पर आ गए तो पंजाब की मंडियों में MSP आधारित बिक्री को खतरा हो सकता है।
किसान आंदोलन की पुनरावृत्ति?
इस समझौते से अगर सरकार ने किसानों से परामर्श नहीं लिया, तो 2020 जैसे विरोध दोबारा उठ सकते हैं।
उत्तर प्रदेश
कृषि पर प्रभाव:
देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य, जहां गन्ना, गेहूं, आलू और धान प्रमुख फसलें हैं।
यदि समझौते के कारण डेयरी सेक्टर को खोल दिया गया, तो पश्चिमी यूपी के दूध उत्पादकों को नुकसान होगा।
युवाओं पर प्रभाव:
बड़ी संख्या में युवा कृषि से जुड़े हैं। अगर लागत व लाभ का अनुपात बिगड़ता है तो रोजगार का संकट बढ़ सकता है।
महाराष्ट्र
कृषि पर प्रभाव:
महाराष्ट्र की विविध कृषि जलवायु फलों, सब्जियों और कपास के लिए जानी जाती है।
यदि समझौते में प्रोसेस्ड फूड या डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल किया गया, तो कोल्हापुर, सांगली, और पुणे क्षेत्र के डेयरी व सहकारी संस्थाओं को बड़ा नुकसान हो सकता है।
किसान आत्महत्या संकट:
पहले से ही जलवायु, कर्ज और बाजार की अनिश्चितता के कारण महाराष्ट्र के कई जिले आत्महत्या की चपेट में हैं। नई प्रतिस्पर्धा से संकट और गहरा सकता है।